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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।

उत्तर -

"हिन्दी में लक्षण ग्रन्थों की परिपाटी पर रचना करने वाले जो सैकड़ों कवि हुए हैं वे आचार्य की कोटि में नहीं आ सकते। वे वास्तव में कवि ही थे। ऐसा कहकर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इन रीतिकालीन लक्षण ग्रन्थकारों के आचार्यत्व पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। उनका मत है कि -

(1) आचार्यत्व के लिए जिस सूक्ष्म विवेचन शक्ति एवं पर्यालोचन शक्ति की आवश्यकता होती है, उसका अभाव इन कवियों में था।
(2) काव्यांगों का विस्तृत विवेचन तर्क द्वारा खण्डन- मण्डन एवं नवीन सिद्धान्तों का 'प्रतिपादन भी हिन्दी रीति ग्रन्थों में नहीं हुआ।
(3) इन रीति ग्रन्थकारों का प्रमुख उद्देश्य कविता करना था, शास्त्र विवेचन नहीं, अतः कवि लोग एक ही दोहे में अपर्याप्त लक्षण देकर अपने कवि कर्म में प्रवृत्त हो जाते थे।
(4) काव्यांगों के सुव्यवस्थित एवं तर्कपूर्ण विवेचन के लिए सुविकसित गद्य का होना 'अनिवार्य है, किन्तु उस समय तक गद्य के विकास न हो सकने के कारण पद्य में ही विवेचन होता था जो अपर्याप्त था,              परिणामतः विषय का स्पष्टीकरण नहीं हो पाता था।
(5) एक दोहे में अपर्याप्त लक्षण देकर वे उसके उदाहरण देने में प्रवृत्त हो जाते थे, परिणामतः अलंकार, आदि के स्वरूप का ठीक-ठीक बोध नहीं होता। कहीं-कहीं तो उदाहरण भी गलत दिये गये हैं।
(6) अलंकारों के वर्गीकरण एवं विश्लेषण में वैज्ञानिक दृष्टि का अभाव है। काव्यांगों के लक्षण विशेषतः अलंकारों के लक्षण भ्रममूलक, अपर्याप्त और अस्पष्ट हैं।
(7) इन्होंने केवल शृंगार रस के विवेचन में ही रुचि ली है, अन्य रसों की प्रायः उपेक्षा की गयी है। इस प्रकार इनका रीति विवेचन एकांगी एकपक्षीय अधूरा है।
(8) शब्द - शक्तियों एवं दृश्य काव्य (नाटक) का विवेचन भी इन लक्षण ग्रन्थकारों ने बहुत कम किया है। भिखारीदास एवं प्रताप साहि ने शब्दशक्तियों का जो थोड़ा-बहुत विवेचन किया है। उसमें विसंगति दिखाई         पड़ती है।
(9) हिन्दी के इन रीति ग्रन्थकारों में मौलिक दृष्टि का अभाव है। संस्कृत काव्यशास्त्र के अनुकरण पर इन्होंने अपने रीति ग्रन्थों का निर्माण किया। हिन्दी के अधिकतर अलंकार ग्रन्थ चन्द्रालोक (जयदेव),                     कुवलयानन्द (अत्यय दीक्षित) के आधार पर निर्मित हुए। परिणामतः किसी नये सिद्धान्त या वाद की स्थापना हिन्दी के लक्षण ग्रन्थकार नहीं कर सके।
(10) आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार "इन्होंने शास्त्रीय मत को श्रेष्ठ और अपने मत को गौण मान लिया, इसलिए स्वाधीन चिन्तन के प्रति एक अवज्ञा का भाव आ गया।"
(11) हिन्दी के इन रीति ग्रन्थकारों का ज्ञान अपरिपक्व था। वे स्वयं अधूरे एवं अधकचरे ज्ञान के आधार पर काव्यांग निरूपण कर रहे थे, अतः विश्लेषण में अस्पष्टता आनी स्वाभाविक थी।
(12) ये लक्षण ग्रन्थकार काव्य मर्मज्ञ तो थे पर विवेचन के लिए अपेक्षित कुशाग्र बुद्धि एवं चिन्तन-मनन का अभाव होने से वे किसी मौलिक सद्भावना का सूत्रपात न कर सके।
(13) डॉ. नगेन्द्र का मत "हिन्दी के रीति आचार्य निश्चय ही किसी नवीन सिद्धान्त का आविष्कार नहीं कर सके। किसी ऐसे व्यापक आधारभूत सिद्धान्त का जो काव्य चिन्तन को एक नई दिशा प्रदान करता, सम्पूर्ण रीतिकाल में अभाव है। इस प्रकार हिन्दी रीतिग्रन्थों द्वारा काव्यशास्त्र का कोई महत्वपूर्ण विकास नहीं हो सका।
(14) इन लक्षण ग्रन्थकारों का मूल उद्देश्य काव्य रसिकों को काव्यशास्त्र से परिचित कराना तथा अपने पाण्डित्य का सिक्का जमाना था। उनके समक्ष काव्यशास्त्र की कोई गम्भीर समस्या थी ही नहीं जिसका             समाधान करने का वे प्रयास करते।
(15) दरबारी परिवेश में तत्कालीन युग की रुचि गम्भीर विषयों की मीमांसा की ओर उतनी नहीं थी जितनी रसिकता की ओर थी, अतः इन कवियों ने काव्यांगों का सतही विवेचन किया है।
(16) भिखारीदास एवं केशव के अलंकार विवेचन एवं वर्गीकरण में अनेक त्रुटियाँ हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन्हीं न्यूनताओं की ओर इंगित करते हुए कहा है- "संस्कृत में अलंकार शास्त्र को लेकर जैसी             सूक्ष्म  विवेचना हो रही थी, उसकी कुछ भी झलक इसमें नहीं पायी जाती। शास्त्रीय विवेचना तो बहुत कम कवियों को इष्ट थी, वे तो लक्षणों को कविता करने का बहाना भर समझते थे। वे इस बात की परवाह नहीं     करते थे कि उनका निर्दिष्ट कोई अलंकार किसी दूसरे अन्तर्भुक्त हो जाता है, या नहीं।
(17) रीति ग्रन्थकारों ने नायिका भेद पर अत्यन्त व्यापक एवं विशद विवेचन करते हुए अनेक ग्रन्थ वात्स्यायन के कामसूत्र को आधार बनाकर लिखे। इसी के अन्तर्गत शृंगार का भी पर्याप्त विवेचन हुआ है।
(18) संस्कृत काव्यशास्त्र में सूत्र कारिका एवं टीका की जो पद्धति चल रही थी उसका आधार इन रीति ग्रन्थकारों ने ग्रहण नहीं किया, इसलिए वे विषय का स्पष्टीकरण करने में सफल नहीं हुए।
(19) रीतिकाल एक इन लक्षण ग्रन्थकारों ने श्रृंगार रस निरूपण के नाम पर विलासी राजाओं एवं दरबारियों को शृंगार रस से लबालब भरे हुए चषकों के साथ-साथ काव्य की सरसता का पान भी कराया।
(20) भले ही हम इन्हें 'आचार्य' न मानें किन्तु हिन्दी में काव्यशास्त्र का द्वार खोलने का श्रेय इन रीति ग्रन्थकारों को अवश्य दिया जा सकता है।

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हिन्दी में लक्षण ग्रन्थों की रचना करने वाले ये सैकड़ों कवि शुद्ध रूप से आचार्य कोटि में नहीं आते, वे कवि ही हैं।

डॉ. नगेन्द्र ने आचार्यों की तीन कोटियाँ मानी हैं :

(अ) उद्भाव आचार्य - जो किसी नवीन सिद्धान्त का प्रतिपादन करें।
(ब) व्याख्याता आचार्य - जो स्थापित मत की व्याख्या करें।
(स) कवि शिक्षक आचार्य - जो काव्यशास्त्र को सरस रूप में अवतरित करें।

निश्चय ही ये रीति ग्रन्थकार प्रथम वर्ग के आचार्य नहीं हैं क्योंकि उन्होंने किसी नवीन सिद्धान्त का प्रतिपादन नहीं किया। वे द्वितीय वर्ग में आने वाले व्याख्याता आचार्य भी नहीं हैं क्योंकि उन्होंने स्थापित मत की व्याख्या करने का काम भी नहीं किया। वे वस्तुतः तृतीय वर्ग के कवि शिक्षक आचार्य माने जा सकते हैं, क्योंकि उन्होंने लक्षण ग्रन्थ लिखकर काव्यशास्त्र की परम्परा को सरस रूप में हिन्दू में अवतरित करने का सराहनीय कार्य अवश्य किया है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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